डॉ. श्यामप्रसाद मुखर्जी कोन हैं?
डॉ. श्यामप्रसाद मुखर्जी
जन्म :- 6 जूलाई 1901 कलकत्ता बंगाल मे
मुत्यू :- 23 जून 1953कश्मीर में कारावास मे
राजकीय दल :- हिंदू महासभा, भारतीय जनसंघ
जीवन संगी :- सुधा देवी
15 आगस्त 1947 के पंतप्रधान पंडित जवाहरलाल नेहरू के मंञीमंडल मे
6 अप्रैल 1950 को वाणिज्य यवं उध्येाग मंञी
1951-52 भारतीय जन संघ के संस्थापक -अध्यक्ष थे
12 दिसंबर 1941 से 20 नवंबर 1942 तक बंगाल प्रांत वित्त मंत्रालय के मंञी बने
1929-1947 बंगाल विधान परिषद् के सांसद बने
8 अगस्त 1934 से 7 अगस्त 1938 कलकत्ता विश्वविद्यालय के कुलपति बने
श्यामा प्रसाद मुख़र्जी के पिता सर आशुतोष मुख़र्जी खुद हाईकोर्ट के जज और शिक्षाविद् हुआ करते थे
वह बहुत ही प्रतिभा वान यव प्रतिष्ठा थे अैसे अच्छे खानदान मे.6 जुलाई सन् 1901 को कोलकाता में जन्मे श्यामा प्रसाद
डॉ॰ मुखर्जी ने 1917 में मैट्रिक किया तथा 1921 में बी०ए० की उपाधि प्राप्त की। 1923 में लॉ की उपाधि अर्जित करने के पश्चात् वे विदेश चले गये और 1926 में इंग्लैण्ड से बैरिस्टर बनकर स्वदेश लौटे। अपने पिता का अनुसरण करते हुए उन्होंने भी अल्पायु में ही विद्याध्ययन के क्षेत्र में उल्लेखनीय सफलताएँ अर्जित कर ली थीं। 33 वर्ष की अल्पायु में वे कलकत्ता विश्वविद्यालय के कुलपति बने। इस पद पर नियुक्ति पाने वाले वे सबसे कम आयु के कुलपति थे। एक विचारक तथा प्रखर शिक्षाविद् के रूप में उनकी उपलब्धि अंकित है
मुख़र्जी को भारतीय राजनीति में उनके कई अहम योगदानों के लिए हमेशा ही याद रखा जाता है 1951 में जनसंघ की स्थापना डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने की थी जिसके बाद 1977 में जनसंघ का जनता पार्टी में विलय हो गया.
श्यामा प्रसाद मुख़र्जी की जिंदगी में उस वक़्त एक नया मोड़ आया जब आज़ादी के बाद भारत के पहले प्रधानमंत्री बने पंडित जवाहरलाल नेहरु ने श्यामाप्रसाद मुख़र्जी को अपने मंत्रिमंडल में शामिल करने का फैसला लिया। उस वक़्त श्यामा प्रसाद मुख़र्जी को उद्योग और आपूर्ति मंत्रालय का कार्यभार सौंपा गया। फिर एक ऐसा वक़्त भी आया जब अप्रैल 1950 में पाकिस्तान मुद्दे पर हुए एक समझौते के चलते उन्होंने मंत्री पद से इस्तीफ़ा तक दे डाला।
इन्ही में से श्यामा प्रसाद मुख़र्जी का एक अहम कदम था कश्मीर मुद्दे पर उनका सुझाया हल जिसके बाद नेहरु सरकार और जम्मू-कश्मीर सरकार ने आखिर ऐसा क्या समझौता था जिसके चलते श्यामा प्रसाद मुख़र्जी को ये कदम उठाना पड़ा? अप्रैल 1950 में मुखर्जी ने नेहरू और पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री लियाकत अली खान के बीच दोनों देशों के अल्पसंख्यकों को लेकर नेहरू-लियाकत समझौते के विरोध में मंत्री पद से इस्तीफा दिया था। इस समझौते के तहत दोनों देश इस बात पर सहमत हुए थे कि अब शरणार्थियों की लूटी हुई संपत्ति वापिस की जाएगी और साथ ही जबरन धर्म परिवर्तन पर भी रोक लगायी जाएगी
इस फैसले के बाद करीब 10 लाख लोगों ने पूर्वी पाकिस्तान से पश्चिम बंगाल की तरफ पलायन किया था. हालाँकि इस समझौते पर वैचारिक मतभेद के चलते श्यामाप्रसाद मुख़र्जी ने इस्तीफ़ा दे दिया था। श्यामा प्रसाद मुख़र्जी का यूँ अपने पद से इस्तीफ़ा दे देना किसी झटके से कम नहीं था। इस्तीफे के साथ ही श्यामा प्रसाद मुख़र्जी ने पंडित नेहरु से कहा था कि ,”कुछ भी क्यों ना हो जाये लेकिन पाकिस्तान के साथ ये समझौता कभी भी सफल नहीं होगा.”
वे एकता और भाईचारा पे अहम थे आजादी के समय जम्मू कश्मीर का अलग झंडा और अलग संविधान हुआ करता था. वहां के मुख्यमंत्री को भी प्रधानमंत्री कहा जाता था. धारा 370 लागू होने से कश्मीर में बगैर परमीट के कोई दाखिल नहीं हो सकता था। इस परमिट का विरोध करते हुए डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने कहा कि एक देश में दो विधान, दो निशान, दो प्रधान नहीं चलेगा. उस वक़्त कश्मीर में जाने के लिए भारतीय नागरिकों को पहचान पत्र दिखाना पड़ता था. जिस बात का भी श्यामाप्रसाद मुख़र्जी ने पुरजोर विरोध किया था. वो डॉ. श्यामा प्रसाद मुख़र्जी ही थे जिन्होंने पांच मई को “कश्मीर दिवस” मनाने की घोषणा की थी
श्यामा प्रसाद मुखर्जी की मौत वाकई बहुत रहस्यमयता से हुही है जानकार बताते हैं की
श्यामा प्रसाद मुख़र्जी 8 मई 1953 को सुबह 6:30 बजे दिल्ली रेलवे स्टेशन से पैसेंजर ट्रेन में अपने समर्थकों के साथ सवार होकर दिल्ली से कश्मीर के लिए निकले थे हालाँकि इस मुद्दे में सबसे ज्यादा चौंकाने वाली बात ये सामने आई कि श्यामा प्रसाद मुख़र्जी को न तो अमृतसर में, न पठानकोट में और न ही रास्ते में कहीं और गिरफ्तार किया गया बल्कि अमृतसर स्टेशन पर करीब 20000 लोग डॉ.मुख़र्जी के स्वागत के लिए मौजूद थे। जिसके बाद 11 मई को वो कश्मीर पहुंच भी गए लेकिन डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी को जम्मू-कश्मीर में बिना परमिट के आते हुए हिरासत में ले लिया गया था। जिसके बाद श्यामा प्रसाद मुखर्जी को उनके साथियों के संग हिरासत में लेकर और श्रीनगर में रखा गया और इसीदौरान
23 जून, 1953 को हिरासत में उनकी संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गई थी। यूँ तो श्यामा प्रसाद मुख़र्जी की मौत सुनने में ही रहस्यमयी लगती है लेकिन डॉ मुख़र्जी की मौत के बाद जवाहरलाल नेहरु ने श्यामा प्रसाद मुख़र्जी की मां योगमाया के एक पत्र के जवाब में कहा था कि ‘मैं इसी सच्चे और स्पष्ट निर्णय पर पहुंचा हूं कि इस घटना में कोई रहस्य नहीं है
डॉ॰ मुखर्जी जम्मू कश्मीर को भारत का पूर्ण और अभिन्न अंग बनाना चाहते थे। उस समय जम्मू कश्मीर का अलग झण्डा और अलग संविधान था। वहाँ का मुख्यमन्त्री (वजीरे-आज़म) अर्थात् प्रधानमन्त्री कहलाता था। संसद में अपने भाषण में डॉ॰ मुखर्जी ने धारा-370 को समाप्त करने की भी जोरदार वकालत की। अगस्त 1952 में जम्मू की विशाल रैली में उन्होंने अपना संकल्प व्यक्त किया था कि या तो मैं आपको भारतीय संविधान प्राप्त कराऊँगा या फिर इस उद्देश्य की पूर्ति के लिये अपना जीवन बलिदान कर दूँगा। उन्होंने तात्कालिन नेहरू सरकार को चुनौती दी तथा अपने दृढ़ निश्चय पर अटल रहे। अपने संकल्प को पूरा करने के लिये वे 1953 में बिना परमिट लिये जम्मू कश्मीर की यात्रा पर निकल पड़े वहाँ पहुँचते ही उन्हें गिरफ्तार कर नज़रबन्द कर लिया गया। 23 जून 1953 को रहस्यमय परिस्थितियों में उनकी मृत्यु हो गयी दबी आवाज मे लोग यह भी कहथेकी उन्हें जहर का ईजेक्शन लगाया गया था
श्यामा प्रसाद मुख़र्जी ने खुद जताई थी अपनी हत्या की आशंका बीजेपी के वरिष्ठ नेता अटल बिहारी वाजपेयी ने 2004 जुलाई में कहा था कि, “श्यामाप्रसाद मुख़र्जी की मौत प्राकृतिक नहीं बल्कि इसमें नेहरु सरकार और जम्मू-कश्मीर सरकार का बड़ा हाथ था|”
डॉ. श्यामप्रसाद मुखर्जी
जन्म :- 6 जूलाई 1901 कलकत्ता बंगाल मे
मुत्यू :- 23 जून 1953कश्मीर में कारावास मे
राजकीय दल :- हिंदू महासभा, भारतीय जनसंघ
जीवन संगी :- सुधा देवी
15 आगस्त 1947 के पंतप्रधान पंडित जवाहरलाल नेहरू के मंञीमंडल मे
6 अप्रैल 1950 को वाणिज्य यवं उध्येाग मंञी
1951-52 भारतीय जन संघ के संस्थापक -अध्यक्ष थे
12 दिसंबर 1941 से 20 नवंबर 1942 तक बंगाल प्रांत वित्त मंत्रालय के मंञी बने
1929-1947 बंगाल विधान परिषद् के सांसद बने
8 अगस्त 1934 से 7 अगस्त 1938 कलकत्ता विश्वविद्यालय के कुलपति बने
श्यामा प्रसाद मुख़र्जी के पिता सर आशुतोष मुख़र्जी खुद हाईकोर्ट के जज और शिक्षाविद् हुआ करते थे
वह बहुत ही प्रतिभा वान यव प्रतिष्ठा थे अैसे अच्छे खानदान मे.6 जुलाई सन् 1901 को कोलकाता में जन्मे श्यामा प्रसाद
डॉ॰ मुखर्जी ने 1917 में मैट्रिक किया तथा 1921 में बी०ए० की उपाधि प्राप्त की। 1923 में लॉ की उपाधि अर्जित करने के पश्चात् वे विदेश चले गये और 1926 में इंग्लैण्ड से बैरिस्टर बनकर स्वदेश लौटे। अपने पिता का अनुसरण करते हुए उन्होंने भी अल्पायु में ही विद्याध्ययन के क्षेत्र में उल्लेखनीय सफलताएँ अर्जित कर ली थीं। 33 वर्ष की अल्पायु में वे कलकत्ता विश्वविद्यालय के कुलपति बने। इस पद पर नियुक्ति पाने वाले वे सबसे कम आयु के कुलपति थे। एक विचारक तथा प्रखर शिक्षाविद् के रूप में उनकी उपलब्धि अंकित है
मुख़र्जी को भारतीय राजनीति में उनके कई अहम योगदानों के लिए हमेशा ही याद रखा जाता है 1951 में जनसंघ की स्थापना डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने की थी जिसके बाद 1977 में जनसंघ का जनता पार्टी में विलय हो गया.
श्यामा प्रसाद मुख़र्जी की जिंदगी में उस वक़्त एक नया मोड़ आया जब आज़ादी के बाद भारत के पहले प्रधानमंत्री बने पंडित जवाहरलाल नेहरु ने श्यामाप्रसाद मुख़र्जी को अपने मंत्रिमंडल में शामिल करने का फैसला लिया। उस वक़्त श्यामा प्रसाद मुख़र्जी को उद्योग और आपूर्ति मंत्रालय का कार्यभार सौंपा गया। फिर एक ऐसा वक़्त भी आया जब अप्रैल 1950 में पाकिस्तान मुद्दे पर हुए एक समझौते के चलते उन्होंने मंत्री पद से इस्तीफ़ा तक दे डाला।
इन्ही में से श्यामा प्रसाद मुख़र्जी का एक अहम कदम था कश्मीर मुद्दे पर उनका सुझाया हल जिसके बाद नेहरु सरकार और जम्मू-कश्मीर सरकार ने आखिर ऐसा क्या समझौता था जिसके चलते श्यामा प्रसाद मुख़र्जी को ये कदम उठाना पड़ा? अप्रैल 1950 में मुखर्जी ने नेहरू और पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री लियाकत अली खान के बीच दोनों देशों के अल्पसंख्यकों को लेकर नेहरू-लियाकत समझौते के विरोध में मंत्री पद से इस्तीफा दिया था। इस समझौते के तहत दोनों देश इस बात पर सहमत हुए थे कि अब शरणार्थियों की लूटी हुई संपत्ति वापिस की जाएगी और साथ ही जबरन धर्म परिवर्तन पर भी रोक लगायी जाएगी
इस फैसले के बाद करीब 10 लाख लोगों ने पूर्वी पाकिस्तान से पश्चिम बंगाल की तरफ पलायन किया था. हालाँकि इस समझौते पर वैचारिक मतभेद के चलते श्यामाप्रसाद मुख़र्जी ने इस्तीफ़ा दे दिया था। श्यामा प्रसाद मुख़र्जी का यूँ अपने पद से इस्तीफ़ा दे देना किसी झटके से कम नहीं था। इस्तीफे के साथ ही श्यामा प्रसाद मुख़र्जी ने पंडित नेहरु से कहा था कि ,”कुछ भी क्यों ना हो जाये लेकिन पाकिस्तान के साथ ये समझौता कभी भी सफल नहीं होगा.”
वे एकता और भाईचारा पे अहम थे आजादी के समय जम्मू कश्मीर का अलग झंडा और अलग संविधान हुआ करता था. वहां के मुख्यमंत्री को भी प्रधानमंत्री कहा जाता था. धारा 370 लागू होने से कश्मीर में बगैर परमीट के कोई दाखिल नहीं हो सकता था। इस परमिट का विरोध करते हुए डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने कहा कि एक देश में दो विधान, दो निशान, दो प्रधान नहीं चलेगा. उस वक़्त कश्मीर में जाने के लिए भारतीय नागरिकों को पहचान पत्र दिखाना पड़ता था. जिस बात का भी श्यामाप्रसाद मुख़र्जी ने पुरजोर विरोध किया था. वो डॉ. श्यामा प्रसाद मुख़र्जी ही थे जिन्होंने पांच मई को “कश्मीर दिवस” मनाने की घोषणा की थी
श्यामा प्रसाद मुखर्जी की मौत वाकई बहुत रहस्यमयता से हुही है जानकार बताते हैं की
श्यामा प्रसाद मुख़र्जी 8 मई 1953 को सुबह 6:30 बजे दिल्ली रेलवे स्टेशन से पैसेंजर ट्रेन में अपने समर्थकों के साथ सवार होकर दिल्ली से कश्मीर के लिए निकले थे हालाँकि इस मुद्दे में सबसे ज्यादा चौंकाने वाली बात ये सामने आई कि श्यामा प्रसाद मुख़र्जी को न तो अमृतसर में, न पठानकोट में और न ही रास्ते में कहीं और गिरफ्तार किया गया बल्कि अमृतसर स्टेशन पर करीब 20000 लोग डॉ.मुख़र्जी के स्वागत के लिए मौजूद थे। जिसके बाद 11 मई को वो कश्मीर पहुंच भी गए लेकिन डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी को जम्मू-कश्मीर में बिना परमिट के आते हुए हिरासत में ले लिया गया था। जिसके बाद श्यामा प्रसाद मुखर्जी को उनके साथियों के संग हिरासत में लेकर और श्रीनगर में रखा गया और इसीदौरान
23 जून, 1953 को हिरासत में उनकी संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गई थी। यूँ तो श्यामा प्रसाद मुख़र्जी की मौत सुनने में ही रहस्यमयी लगती है लेकिन डॉ मुख़र्जी की मौत के बाद जवाहरलाल नेहरु ने श्यामा प्रसाद मुख़र्जी की मां योगमाया के एक पत्र के जवाब में कहा था कि ‘मैं इसी सच्चे और स्पष्ट निर्णय पर पहुंचा हूं कि इस घटना में कोई रहस्य नहीं है
डॉ॰ मुखर्जी जम्मू कश्मीर को भारत का पूर्ण और अभिन्न अंग बनाना चाहते थे। उस समय जम्मू कश्मीर का अलग झण्डा और अलग संविधान था। वहाँ का मुख्यमन्त्री (वजीरे-आज़म) अर्थात् प्रधानमन्त्री कहलाता था। संसद में अपने भाषण में डॉ॰ मुखर्जी ने धारा-370 को समाप्त करने की भी जोरदार वकालत की। अगस्त 1952 में जम्मू की विशाल रैली में उन्होंने अपना संकल्प व्यक्त किया था कि या तो मैं आपको भारतीय संविधान प्राप्त कराऊँगा या फिर इस उद्देश्य की पूर्ति के लिये अपना जीवन बलिदान कर दूँगा। उन्होंने तात्कालिन नेहरू सरकार को चुनौती दी तथा अपने दृढ़ निश्चय पर अटल रहे। अपने संकल्प को पूरा करने के लिये वे 1953 में बिना परमिट लिये जम्मू कश्मीर की यात्रा पर निकल पड़े वहाँ पहुँचते ही उन्हें गिरफ्तार कर नज़रबन्द कर लिया गया। 23 जून 1953 को रहस्यमय परिस्थितियों में उनकी मृत्यु हो गयी दबी आवाज मे लोग यह भी कहथेकी उन्हें जहर का ईजेक्शन लगाया गया था
श्यामा प्रसाद मुख़र्जी ने खुद जताई थी अपनी हत्या की आशंका बीजेपी के वरिष्ठ नेता अटल बिहारी वाजपेयी ने 2004 जुलाई में कहा था कि, “श्यामाप्रसाद मुख़र्जी की मौत प्राकृतिक नहीं बल्कि इसमें नेहरु सरकार और जम्मू-कश्मीर सरकार का बड़ा हाथ था|”
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